हिरामात्सु जी जापानी हैं पर तैईवान में रहते हैं। आप ताईपेई में हिंदी कक्षा चलाते हैं। मुझे १९९० में, जापान एक सम्मेलन में रहने का मौका मिला। मुझे वहां आमन्त्रित किया गया था। हीरामात्सु जी कभी कभी मुन्ने के बापू से ईमेल पर बात करते हैं। उनकी कक्षा में जा कर लगा कि मैं भी वहां के संस्मरण लिखूं।
जापान एक अलग सा देश है। हमार सम्मेलन क्योटो शहर में था। वैसे तो जापान की राजधानी टोक्यो है परन्तु सम्मेलन वालों ने बताया कि क्योटो शहर उन्होंने इसलिए चुना क्योंकि वह जापान की सांस्कृतिक राजधानी है। यहां पर जापान की संस्कृति वास करती है।
क्योटो पहुंचने के लिए हवाई जहाज पहले ओसाका पहुंचा। वहां से टैक्सी लेकर क्योटो पहुंचे । आरम्भ से ही लग रहा था कि जापानी भाषा नहीं आती है, तो कैसे काम चलेगा लेकिन कोई कठिनाई नहीं हुई। वहां के लोग इशारों और संकेतों से सहायता कर देते थे। किसी को भी जोर से बोलते या लड़ते हुए नहीं देखा। सड़कों पर कोई गन्दगी नहीं । कार एवं मोटर साइकिल चमकती हुई थी।
उस समय के चित्र तो नहीं बचे हैं पर एक चित्र जहां हमारा सम्मेलन हुआ था और एक चित्र वहां के मन्दिर का है जो मैं पोस्ट कर रही हूं। हमारा सम्मेलन Kyoto International Conference Centre में हुआ था। इस इमारत के बहुत अच्छे चित्र यहां हैं। यह वेबसाइट मुझे हिरामात्सु जी ने ही बतायी है।
मैंने जीवन में , पहली बार 'औक्टोपस' और सक्विड' के पकौड़े बनते देखे। मैं मांस और मछली खाती हूं पर यह खाने की हिम्मत नहीं हुई। पकौड़े पीले रंग के नहीं, बल्कि सफेद रंग के थे। वहां की प्रिय डिश है 'सुशी'। यह तरह-तरह की मछलियों के टुकड़े होते हैं परन्तु खाने में लगता था कि जैसे अधपके हों। इसे लकड़ी के गोल आकार के टुकड़ों पर सजाया जाता है।
जापान में समय की बहुत पाबन्दी रहती है। सम्मेलन में सभी प्रोग्राम समय के अनुसार पूरे हुऐ। हम लोगों को कोबेे शहर जो समुद्र के तट पर है, घुमाने ले जाया गया। बहुत सी नयी इमारतें एक टापू पर बनी हुई थी। हमें बताया गया कि टापू समुद्र में रेत भरकर बनाए गये हैं। जमीन भी बहुत मंहगी है।
क्योटो शहर के बारे में हिरामात्सु जी ज्यादा अच्छा बता पायेंगे। मैं इनसे प्रार्थना करूंगी कि वे इस शहर के बारे में हमें कुछ और बतायें।
जापान के मंदिर भी, बहुत कुछ हमारे मंदिरो जैसे थे। आरम्भ में घंटियां लटकी हैं। पैगोडा जैसा आकार था सभी का। मुझे जापान अच्छा देश लगा हांलाकि भाषा की वजह से मैं वहां के लोगों ज्यादा बात नहीं कर पायी।
मुझे जापान और यह सम्मेलन हमेशा याद रहेगा। यह इसलिये भी, क्योंकि इस अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन में मैंने एक पेपर पढ़ा था जिस पर मुझे पुरुस्कार भी मिला।
जापान एक अलग सा देश है। हमार सम्मेलन क्योटो शहर में था। वैसे तो जापान की राजधानी टोक्यो है परन्तु सम्मेलन वालों ने बताया कि क्योटो शहर उन्होंने इसलिए चुना क्योंकि वह जापान की सांस्कृतिक राजधानी है। यहां पर जापान की संस्कृति वास करती है।
क्योटो पहुंचने के लिए हवाई जहाज पहले ओसाका पहुंचा। वहां से टैक्सी लेकर क्योटो पहुंचे । आरम्भ से ही लग रहा था कि जापानी भाषा नहीं आती है, तो कैसे काम चलेगा लेकिन कोई कठिनाई नहीं हुई। वहां के लोग इशारों और संकेतों से सहायता कर देते थे। किसी को भी जोर से बोलते या लड़ते हुए नहीं देखा। सड़कों पर कोई गन्दगी नहीं । कार एवं मोटर साइकिल चमकती हुई थी।
उस समय के चित्र तो नहीं बचे हैं पर एक चित्र जहां हमारा सम्मेलन हुआ था और एक चित्र वहां के मन्दिर का है जो मैं पोस्ट कर रही हूं। हमारा सम्मेलन Kyoto International Conference Centre में हुआ था। इस इमारत के बहुत अच्छे चित्र यहां हैं। यह वेबसाइट मुझे हिरामात्सु जी ने ही बतायी है।
मैंने जीवन में , पहली बार 'औक्टोपस' और सक्विड' के पकौड़े बनते देखे। मैं मांस और मछली खाती हूं पर यह खाने की हिम्मत नहीं हुई। पकौड़े पीले रंग के नहीं, बल्कि सफेद रंग के थे। वहां की प्रिय डिश है 'सुशी'। यह तरह-तरह की मछलियों के टुकड़े होते हैं परन्तु खाने में लगता था कि जैसे अधपके हों। इसे लकड़ी के गोल आकार के टुकड़ों पर सजाया जाता है।
जापान में समय की बहुत पाबन्दी रहती है। सम्मेलन में सभी प्रोग्राम समय के अनुसार पूरे हुऐ। हम लोगों को कोबेे शहर जो समुद्र के तट पर है, घुमाने ले जाया गया। बहुत सी नयी इमारतें एक टापू पर बनी हुई थी। हमें बताया गया कि टापू समुद्र में रेत भरकर बनाए गये हैं। जमीन भी बहुत मंहगी है।
क्योटो शहर के बारे में हिरामात्सु जी ज्यादा अच्छा बता पायेंगे। मैं इनसे प्रार्थना करूंगी कि वे इस शहर के बारे में हमें कुछ और बतायें।
जापान के मंदिर भी, बहुत कुछ हमारे मंदिरो जैसे थे। आरम्भ में घंटियां लटकी हैं। पैगोडा जैसा आकार था सभी का। मुझे जापान अच्छा देश लगा हांलाकि भाषा की वजह से मैं वहां के लोगों ज्यादा बात नहीं कर पायी।
मुझे जापान और यह सम्मेलन हमेशा याद रहेगा। यह इसलिये भी, क्योंकि इस अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन में मैंने एक पेपर पढ़ा था जिस पर मुझे पुरुस्कार भी मिला।
टोकियो मे मेरी एक भतीजी रहती है..समय की पाबन्दी,साफ सफाई और कई सारी बातें उससे होती रहती हैं..कभी लिखूँगी उसके बारे मे..कई दिनो बाद आपकी पोस्ट देखकर अच्छा लगा..पिछली पोस्ट शायद मछली की बारे मे थी, जिससे मेरा दूर दूर तक कोइ सम्बन्ध नही है, अत्: नही पढी!!
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