कुछ दिन पहले अरविन्द भाईसाहब ने एक चिट्टी 'मैं शर्म से हुई लाल ....' लिख कर गालों की लाली के बारे में चर्चा की थी। इसके बाद अभिषेक भइया ने भी 'लाली देखो लाल की...!' चिट्ठी लिख कर कुछ अलग प्रकार के अनुभव के बारे में लिखा। इन चिट्ठियों पर मुझे २५ साल पहले गालों की लाली याद आयी। मैं बहुत दिन से लिखने की सोच रही थी पर बस लिख ही नहीं पायी। कुछ काम, कुछ अध्यापन, कुछ आलस।
नेहू (North East Hill University) शिलॉंग (Shillong) में स्थित केन्द्रीय विश्विद्यालय है। अस्सी के दशक में, मुझे नेहू (North East Hill University) में एक सम्मेलन में भाग लेने जाना था। यह सम्मेलन दशहरे के बाद था तो हम सब ने प्रोग्राम बनाया कि दशहरे में हम लोग कलकत्ता, नागालैन्ड, शिलॉंग घूमेगें फिर ये और मुन्ना वापस आ जायेंगे। मैं शिलॉंग में ही रुक जाउंगी और सम्मेलन में भाग लेकर अपने सहोयोगियों के साथ वापस कस्बे आ जाउंगी। हम शिलॉंग में नेहू के गेस्ट हाउस में ठहरे।

आपको कभी मौका मिले तो अवश्य शिलॉंग जाइयेगा। यह बहुत सुन्दर जगह है। नेहू को भी देखियेगा। इसकी इमारत एक पहाड़ पर है। चारो तरफ जंगल है। हिरण वगैरह दिखायी पड़ते रहते हैं।
शिलॉंग में खसी (Khasi) लोग रहते हैं। यह मातृ प्रधान (Matrilineality एवं Matriachal) समाज है। पति, पत्नी के यहां रहने जाता है और उसी का सर नाम लेता है। सारी जमीन दौलत सबसे छोटी पुत्री को वरासत में मिलता है। इसलिये वहां की महिलाओं में आत्मविश्वास है, वे सशक्त हैं उन्हें महिला सशक्तिकरण की जरूरत नहीं है। दुकाने वगैरह महिलायें ही चलाती हैं। वहां हमें लड़कियों को अकेले पार्क में घूमते खरीददारी करते देखते थे और यह अच्छा लगता था।

'इस लड़की ने फैशन कर रखा है या फिर इसके गाल प्राकृतिक रूप से लाल हैं?'
मैंने कहा कि मैं देख कर बताती हूं। वहां लड़कियें/ महिलायें एक खास तरह की ड्रेस पहनती हैं। इसे जैनसम (Jainsem) कहा जाता है। यह घुटने तक का लम्बा शॉल सा होता है जो कि कन्धों से पिन या फिर गांठ के द्वारा बंधा होता है।
इसके पहले कि मैं उस लड़की को गौर से देखूं और इनके सवाल का जवाब दूं वह लड़की हमारे पास आयी और गाल पर शॉल को रगड़ कर बार बार इन्हें दिखाती थी। वह अपनी खसी भाषा में कुछ कहती भी जा रही थी। इस बार बगल में बैठे सज्जन बोले,
'मैंने आपके पति का सवाल इस लड़की से खसी भाषा में बताया है। वह आपको शॉल से रगड़ कर दिखा रही है कि लाली नहीं छूट रही है। वह खसी भाषा में कह रही है कि यह प्राकृतिक है। उसने फैशन नहीं किया है।'
मैं नहीं समझती की उत्तर भारत में कोई लड़की इस तरह से हमारे सवाल का जवाब दे सकती। इनके हिसाब से यही समाज बेहतर है। मैं भी यही सोचती हूं।
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yeh poat hmaree Shillong ke anubhavon ke baare mein hai. yeh hindi (devnagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen. This is post is about our experiences of Shillong trip. It is in Hindi (Devnaagaree script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script. |
सांकेतिक शब्द
Matriachal, Matrilineality, Jainsem, Khasi, NEHU, Shillong, खसी, जैनसम, मातृ प्रधान, शिलॉंग,Travel, Travel, travel and places, Travel journal, Travel literature, travel, travelogue, सिक्किम, सैर सपाटा, सैर-सपाटा, यात्रा वृत्तांत, यात्रा-विवरण, यात्रा विवरण, यात्रा संस्मरण,
sahi baat kahi aapne..
ReplyDeleteIt is their natural beauty compounded by cold weather
ReplyDeleteGood post --
Warm regards for a wonderful 2009 ahead !
- Lavanya