गोल्फ

इस चिट्ठी में, गोल्फ की चर्चा है।
श्रीनगर में नया अन्तरराष्ट्रीय गोल्फ कोर्स

गोल्फ भी क्या खेल है। बस क्लब (club) से गेंद को मारते चलो। यह जगह फेयरवे कहलाती है। आगे जा कर एक, जगह छेद होता है। इसके चारो तरफ घास बहुत अच्छी तरह से कटी होती है। इसको ग्रीन कहते हैं।


गेंद को इसी छेद में डालना होता है।आपको अपने क्लब से गेंद को मारना पड़ता है और कम से कम बार मार कर होल में डालना होता है।कितने बार मार कर गेंद को किसी फेयरवे में डालना होता है वह उस फेयरवे का पार कहलाता है।


गोल्फ कोर्स में, १८ होल होते हैं यानि कि १८ फेयरवे। कुछ जगह केवल ९ ही होते हैं। इन नौ को आप दो बार खेलते हैं। १८ होल के फेयरवे का गोल्फ कोर्स ७२ का होता है।

इसकी गेंद भी खास तरह की होती। जिसके कारण यह ऊपर उठती है या घूमती है और यह सब भौतिक शास्त्र के बरनॉली सिद्धान्त के कारण होता है। इस सिद्धान्त के बारे में उन्मुक्त ने बेन्ड इट लाइक बेख़म की चिट्ठी में बताया है।

इस खेल में बहुत समय लगता है। मुझे तो यह खेल कभी समझ में नहीं आया पर पूरी दुनिया इसकी दिवानी है। उन्मुक्त भी इसके दिवाने हैं पर समय आभाव के कारण ज्यादा खेल नहीं पाते हैं।

मैं भी कभी कभी इनके साथ गोल्फ कोर्स जाती हूं। मुझे यह खेल तो अजीब लगता है पर गोल्फ कोर्स पर जाना अच्छा लगता है। यह कस्बे की सबसे साफ सुथरी जगह है। सब तरफ हरा रंग। यहां पर पैदल चलने का अलग ही मजा है।

उन्मुक्त कहते हैं कि यह खेल जीवन में अनुकरण करने की बातों को सिखाता हैः

  • नम्र रहोः सिर झुका कर रखो सिर ऊपर न उठाओ। गेंद को क्लब से मारते समय आंखे हमेशा गेंद पर रखनी होती है। यह तभी हो सकता है जब सर नीचे हो। जब तक पूरा शॉट न लग जाय तब तक आंखें नीचे गेंद पर रहनी चाहिये नहीं तो शॉट बेकार कभी आपका क्लब गेंद के ऊपर से गुजर जायगा या फिर गेंद के पहले जमीन पर लग जायगा।
  • प्यार से रहोः गेंद को जोर से मारोगे तो शॉट बेकार हो जायगा। गेंद को प्यार से स्विंग से मारोगे तो वह उतनी दूर जायगी।
  • टेंशन मत लोः यदि गेंद को मारते समय आप तनाव में रहते हैं तो शॉट गड़बड़ हो जायगी। इसलिये टेंशन मत लो। शॉट मारने के बाद उसे भूल जाओ।

इस खेल में बहुत समय लगता है पर फिर मैं चाहती हूं कि ये इसे हमेशा खेले। कम से कम साफ वतावरण में तो रहते हैं कुछ कसरत तो होती है। इस खेल में उम्र का कोई तकाज़ा नहीं है। कम से कम मेरी सौत कंप्यूटर पर तो नहीं बैठेंगे। नहीं तो जब देखो कमरे में बैठे बैठे उंगलियां इसी पर थिरकती रहती हैं।

गोल्फ कोर्स तो सब जगह के सुन्दर होते हैं पर विदेश में तो इनकी सुन्दरता देखने लायक है। मुझे तीन साल पहले टोरंटो के यॉर्क विश्विद्यलय में एक सम्मेलन में रहने का मौका मिला था। वहां से हम लोग किचनर में एक गोल्फ कल्ब - शायद Rebel Golf Club, Kitchner - गये थे। यह कोर्स बहुत सुन्दर है। यहां पर हमारा दिन का खाना था। इसके आखरी ग्रीन के चारो तरफ पानी ही पानी था।


सबसे ऊंचाई पर गोल्फ कोर्स तो अपने ही देश में, के गुलमर्ग में है। हम लोग कश्मीर यात्रा के समय वहां गये थे। यह इस समय बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। 


श्रीनगर में एक अन्तरराष्ट्रीय स्तर का १८ होल का नया गोल्फ कोर्स बनाया गया है। यह बहुत सुन्दर है। परी महल से इसका दृश्य अनोखा लगता है।

इस बार की सारी कापियां जच गयीं पर मुझे कोई कविता नहीं मिली जैसे कि पिछले साल मिल गयी थी।

Comments

  1. मैंने तो कभी गोल्फ नहीँ खेला पर मुन्ने के बापू का गोल्फ के प्रति दर्शन अच्छा लगा कि इसमें भी उन्होंने भौतिकी से लगाकर व्यावहारिक जीवन के ज्ञान को समझा जो कि आप द्वारा हम तक प्रेषित हुआ।

    ReplyDelete
  2. मैने भी कभी नही खेला है॥

    ReplyDelete
  3. बर्नौली का सिद्धांत याद कर रहा हूँ -इंटरमीडिएट में पढ़ा था ...

    ReplyDelete

Post a Comment