मुन्ने के बापू आजकल अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर महिला सशक्तिकरण की कहानी 'आज की दुर्गा' नाम से बता रहें है। वे इसे अपने पॉडकास्ट बकबक पर सुना भी रहें हैं। इस बारे में वे कभी कभी मुझे बताते हैं। इसी सिलसिले में मुझे मालती जोशी कि एक कहानी याद आगयी। इस कहानी का नाम 'परम्परा' है जो कि मैंने उनकी पुस्तक 'बाबुल का घर' में पढ़ी है।
यह कहानी एक बेटी की तरफ से है जिसका भाई अमेरिका में रहता है। वह अपने पति के साथ भारत में रहती है। उसके माता पिता उसी के साथ रहते हैं। वे कुछ समय के लिये अमेरिका चले जाते हैं जहां पिता कि मृत्यु हो जाती है। पिता मरते समय मां से कह जाता है कि अपने कपड़े और रहने का ढ़ंग उनकी मृत्यु के बाद भी नहीं बदलना। भाई, मां को लेकर वापस छोड़ने आता है। वह कुछ परेशान सा है वह चाहता है कि मां विधवा वाले वस्त्र के कपड़े पहने और उसी ढ़ंग से रहे। दमाद भी यही चाहते हैं अन्त में बेटी को आश्चर्य और दुख होता है कि मां उसके विरोध करने के बावजूद वैसे ही वस्त्र धारण कर लेती है जैसा कि पुत्र या समाज चाहता था। कहानी का अन्त कुछ इस तरह से बेटी के शब्दों के साथ होता है,
मालती जोशी जी कि कहानियां मन को छूने वाली होती हैं। अपनी कहानियों के बारे में, वे कहती हैं,
मालती जोशी का जन्म ४ जून १९३४ को औरंगाबाद में हुआ था । आपने आगरा विश्वविद्यालय से वर्ष १९५६ में हिन्दी विषय से एम.ए. की शिक्षा ग्रहण की। अब तक अनगिनत कहानियां, बाल कथायें व उपन्यास प्रकाशित कर चुकी हैं। इनमें से अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है। कई कहानियों का रंगमंचन रेडियो व दूर दर्शन पर नाट्य रूपान्तर भी प्रस्तुत किया जा चुका है। कुछ पर जया बच्चन द्वारा दूरदर्शन धारावाहिक सात फेरे का निर्माण किया गया है तथा कुछ कहानियां गुलजार के दूरदर्शन धारावाहिक किरदार में तथा भावना धारावाहिक में शामिल की जा चुकी हैं। इन्हें हिन्दी व मराठी की विभिन्न व साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया जा चुका है। मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वर्ष १९९८ के भवभूति अलंकरण सम्मान से विभूषित किया जा चुका है।
मालती जोशी भोपाल में स्नेहबंध, ५०-दीपक सोसाइटी, चूना भट्टी- कोलार रोड, पर रहती हैं। इन्हें अक्सर भोपाल काम से जान पड़ता है। मैं इनसे कहूंगी कि अगली बार मालती जी से मिल कर कर आयें।
चलती हूं, मुन्ने ने कहा था कि राजमां बनाने की विधि लिख कर भेजो। इसे भी पूरा करूं।
यह कहानी एक बेटी की तरफ से है जिसका भाई अमेरिका में रहता है। वह अपने पति के साथ भारत में रहती है। उसके माता पिता उसी के साथ रहते हैं। वे कुछ समय के लिये अमेरिका चले जाते हैं जहां पिता कि मृत्यु हो जाती है। पिता मरते समय मां से कह जाता है कि अपने कपड़े और रहने का ढ़ंग उनकी मृत्यु के बाद भी नहीं बदलना। भाई, मां को लेकर वापस छोड़ने आता है। वह कुछ परेशान सा है वह चाहता है कि मां विधवा वाले वस्त्र के कपड़े पहने और उसी ढ़ंग से रहे। दमाद भी यही चाहते हैं अन्त में बेटी को आश्चर्य और दुख होता है कि मां उसके विरोध करने के बावजूद वैसे ही वस्त्र धारण कर लेती है जैसा कि पुत्र या समाज चाहता था। कहानी का अन्त कुछ इस तरह से बेटी के शब्दों के साथ होता है,
'मेरे सारे तर्क हार गए थे।। अम्मा ने कितने नपे-तुले शब्दों में नारी-जीवन को परिभाषित कर दिया था। उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व ही नहीं है। वह हमेशा से पुरूष के अधीन रही है, चाहे वह पिता हो, पति हो या बेटा। यही उसकी नियति है, यही त्रासदी है और यही परम्परा है।'साधारणतया आज की दुर्गा तो यही है। मुन्ने के बापू तो शायद कल की दुर्गा की कहनी अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर बता रहें हैं।
मालती जोशी जी कि कहानियां मन को छूने वाली होती हैं। अपनी कहानियों के बारे में, वे कहती हैं,
'जीवन की छोटी-छोटी अनुभूतियों को, स्मरणीय क्षणों को मैं अपनी कहानियों में पिरोती रही हूं। ये अनुभूतियां कभी मेरी अपनी होती हैं कभी मेरे अपनों की। और इन मेरे अपनों की संख्या और परिधि बहुत विस्तृत है। वैसे भी लेखक के लिए आप पर भाव तो रहता ही नहीं है। अपने आसपास बिखरे जगत का सुख-दु:ख उसी का सुख-दु:ख हो जाता है। और शायद इसीलिये मेरी अधिकांश कहानियां "मैं” के साथ शुरू होती हैं।'
मालती जोशी का जन्म ४ जून १९३४ को औरंगाबाद में हुआ था । आपने आगरा विश्वविद्यालय से वर्ष १९५६ में हिन्दी विषय से एम.ए. की शिक्षा ग्रहण की। अब तक अनगिनत कहानियां, बाल कथायें व उपन्यास प्रकाशित कर चुकी हैं। इनमें से अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है। कई कहानियों का रंगमंचन रेडियो व दूर दर्शन पर नाट्य रूपान्तर भी प्रस्तुत किया जा चुका है। कुछ पर जया बच्चन द्वारा दूरदर्शन धारावाहिक सात फेरे का निर्माण किया गया है तथा कुछ कहानियां गुलजार के दूरदर्शन धारावाहिक किरदार में तथा भावना धारावाहिक में शामिल की जा चुकी हैं। इन्हें हिन्दी व मराठी की विभिन्न व साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया जा चुका है। मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वर्ष १९९८ के भवभूति अलंकरण सम्मान से विभूषित किया जा चुका है।
मालती जोशी भोपाल में स्नेहबंध, ५०-दीपक सोसाइटी, चूना भट्टी- कोलार रोड, पर रहती हैं। इन्हें अक्सर भोपाल काम से जान पड़ता है। मैं इनसे कहूंगी कि अगली बार मालती जी से मिल कर कर आयें।
चलती हूं, मुन्ने ने कहा था कि राजमां बनाने की विधि लिख कर भेजो। इसे भी पूरा करूं।
मालती जोशी का परिचय आपने अच्छा लिखा। अब इसे विकिपीडिया पर भी डाल दें!
ReplyDeleteमालती जोशी की कहानियाँ हमेशा अच्छी लगती रही हैं ।
ReplyDeleteअनूप भाईसाहब
ReplyDeleteमैंने इनसे कह दिया था तो इन्होंने मालती जोशी का परिचय विकिपीडिया पर डालदिया है।
"...इन्हें अक्सर भोपाल काम से जान पड़ता है। मैं इनसे कहूंगी कि अगली बार मालती जी से मिल कर कर आयें।..."
ReplyDeleteहालाकि मैं कोई मालती जोशी शख्सियत के पासंग बराबर भी नहीं हूँ, मगर रतलाम भोपाल के बहुत करीब है. आपसे इल्तिज़ा है कि आप इनसे कहिए कि अगली बार भोपाल आएं तो रतलाम भी हो आएं. यहां के रतलामी सेव भी खासे प्रसिद्ध हैं और स्वादिष्ट हैं....
कसम से उन्मुक्त बाबू और मुन्ने की माँ की जुगलबन्दी बहुत सही है। उन्मुक्त अपने चिट्ठे पर अपनी प्रविष्टियों के अंत में आपकी प्रविष्टि की कड़ी छोड़ देते हैं क्या बात है। अगली बार भारत आना हुआ तो इस मस्त ब्लॉग युगल से मिलने की चाह रहेगी। हो सकता है मुन्ने की तरह हमें भी राजमां चावल खाने को मिल जांए।
ReplyDeleteपंकज नरुला
रवी भाई साहब क्या हमें यह बताना पड़ेगा कि आप हम दोनो के लिये बहुत खास हैं।
ReplyDeleteनरुला भैइया आपका स्वागत है। हिन्दी चिट्ठाजगत आपका हमेशा ऋणी रहेगा
हर बार की तरह वही रोना है कि पढा नही है लेकिन सुना है..पढूँगी...शायद मालती जोशी जी की बहू (जब उनकी शादी नही हुई थी, तब उनके पिता के घर ) खरगोन मे रह चुकी हूँ और मै उन्हे जानती हूँ..
ReplyDeleteअरे वाह आपने सबके लिये जवाब भी लिखे हैं! मुझे भी जवाब मिलेगा?
रचना
ReplyDeleteकिताबें पढ़ने का शौक तो इन्हे ही है। वे ही पढ़ कर, मुझे पढ़ने को कहते हैं।
Malti Joshi Meri bhi pasandida lekhko main se ek hai.
ReplyDeleteभोपाल में हमारी एक पड़ोसन थी जो गृहस्थ होते हुए भी काफी अधिक पूजा पाठ में लगी रहती थी .कुछ दिनों बाद वह चूना भट्टी शिफ्ट कर गयी और ये जानकार सुखद आश्चर्य हुआ की उसके पड़ोस का घर मालती जोशी जी का है .पर तभी मैंने कहा की जरूर इस पड़ोसन का चरित्र उनके लेखन में पढने को मिलेगा . और यही हुआ ,कुछ ही दिनों बाद अखबार में उनके एक स्तम्भ में मुझे उस पड़ोसन के बारे में पढने को मिल गया .मै जानती थी की इस बार उनका पात्र कौन है .
ReplyDeleteनंदिनी खरे
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletemalti joshi is my favourite author .i am amaths teacher. ihave started reading her books a year back her stories are very touching.,it has created interest in hindi literacher.i have recomended her books to others also .i have become a great fan of her .i have read all her books in my school liberary.i pray for her good health .she is a great stength for the women .i want to meet her if she comes to delhi.
ReplyDeleteI am an expatriate living presently in Malaysia. When I was in India I made it a point to buy all books of Malti Joshi ji and used to read them again and again.I miss her books here as I miss my country. Can I get online access to read her books here? I will be very grateful if you could suggest a link. Thanks. Vivek.
ReplyDeleteमैं कह नहीं सकती कि मालती जोशी की पुस्तकें ऑनलाइन हैं अथवा नहीं। लेकिन आप ऑनलाइन ऑर्डर क्यों नहीं कर देते।
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