हरिवंश राय बच्चन: रूस यात्रा

मुन्ने के बापू आजकल अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर बच्चन जी की जीवनी के बारे में लिख रहें हैं। इसकी सबसे नवीनतम ग्यारवीं पोस्ट यहां है। इसमें बच्चन जी के रूस जाने की चर्चा है। वे वहां बीमार हो गये। वे इस अनुभव को इस प्रकार से बताते हैं,
'विदेश में कोई बीमार न पड़े, खासकर ऐसे विदेश में जहाँ उसकी भाषा न समझी जाय, या वह वहां की भाषा न समझे। इस दुर्भाग्य का शिकार भी मुझे होना था।'
बच्चन जी को रूस में अस्पताल से तब तक नहीं छोड़ा गया जब तक उन्होनें यह नहीं कह दिया कि वे ठीक हो गये। बच्चन जी इसे कुछ इस प्रकार बताते हैं,
'मुझसे पहले किसी ने गंभीरतापूर्वक या मजाक-मजाक में कहा था कि रूसी अधिकारी अस्पताल में दाखिल होने पर मरीज को या तो अच्छे होने पर बाहर जाने देते हैं, या फिर उसकी लाश को। वे नहीं चाहते। वे नहीं चाहते कि मरीज़ बाहर जा कर कहे कि उसका मर्ज़ रूसी डाक्टरों से अच्छा नहीं किया जा सका।'
मुझे कभी, कभी विदेश सम्मेलनो में जाना पड़ता है और एक बार रूस भी जाना पड़ा। इन्होने मुझसे यह पूछा कि क्या रूस में ऐसा होता है। यह सच है कि विदेश में बीमार पड़ना दुखदायी है और ऐसे देश में जहां लोग आपकी भाषा न समझे वह और भी। मुझे एक बार रूस जाने का मौका मिला था पर मैं वहां बिमार नहीं पड़ी। इस लिये यह तो नहीं बता सकती कि ऐसा होता है कि नहीं पर मुझे भी रूस में उन शहरों में जाने का मौका मिला ,जहां बच्चन जी गये थे। उनके संस्मरण के बारे में आप उनकी जीवनी के चौथे भाग में पढ़ सकते हैं। मैं तो वहां के, अपने अनुभवों के बारे में बता सकती हूं।

लगभग बीस वर्ष पहले, मैं एक कान्फ्रेन्स में बाकू गयी थी। यह शहर एजरबजान में है और कैस्पियन समुद्र के तट पर बसा है। कॉन्फ्रेन्स का आयोजन समुद्र के तट पर बने एक सैनिटोरियम में किया गया था। सब लोग एक हाल में भोजन करते थे, जहां अक्सर गुजिया एवं अन्य पकवान खाने को मिलते थे।

विश्व के मशहूर शतरंज खिलाड़ी कैस्पारोव बाकू के हैं। पूरे शहर में जैसे शतरंज छाया रहता था, जैसे यहां पर क्रिकेट। पेड़ों के नीचे, व्यक्तियों को शतरंज खेलते अक्सर देखा जा सकता था। मैंने वहां से कुछ समान लिया था वह अब भी मेरे पास है। उसे आप भी देख सकते हैं।

यहां सभी ने कहा कि रूस जा रही हो तो लेनिनग्राड अवश्य जाना, वह उत्तर का ‘वेनिस’ कहलाता है। मैं वहां भी गयी थी। वहॉं पहुँच कर मैंने देखा कि पूरे शहर में नहरें बह रही हैं जो कि समुद्र में जाकर मिलती हैं। वहां का सेन्ट पीटर्सबर्ग संग्रहालय विख्यात है।

लेनिनग्राड में कुछ भारतीय लड़के लड़कियों से भेंट हुई जो वहां पढ़ने के लिए गये हुए थे। उन्होंने मुझे भारतीय खाना बनाकर खिलाया- दाल, चावल और पापड़ की रसेदार तरकारी बनायी। मुझे खरीदारी कराने भी ले गये जहां से मैंने परिवार के लोगों के लिए मफलर और टोपे खरीदे। मेरे ससुर तो सर्दियों मे अभी भी उन्हे ही पहनते हैं। लेनिनग्राड में सब्जी की दुकान पर सिर्फ आलू बिकता दिखाई देता था और फल की दुकान पर केवल हरा सेब - पता नहीं, वहां अब क्या क्या मिलता है।

वापस भारत आने के लिए, मॉस्को से होते हुए आना था। मैं मॉस्को विश्वविद्यालय देखने गयी जो मॉस्कवा नदी के किनारे बना हुआ है। सभी इमारतों में एक अद्भुत सुन्दरता थी। मॉस्को में उस समय भारतीय राजदूत श्री टी.एन.कौल थे। मैंने उनसे फोन पर बात की। उन्होंने कहा कि वे एक समारोह में जा रहे हैं नहीं तो हमसे भेंट करते। सबसे प्रसन्नता की बात है कि वे शुद्ध हिन्दी में बोल रहे थे। हाँ, मॉस्को के सब-वे स्टेशन अपनी सुन्दर मूर्तियों और स्वच्छता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। मैंने उसको भी देखा।

मैंने रूस में कई चित्र भी लिये थे पर वे इधर उधर हो गये। केवल एक फोटो मॉस्को विश्विद्यालय का बचा है जो यह है।

जिस समय मैं रूस गयी थी वह समय रूस देश के लिये बहुत मुश्किल का समय था। नये बदलाव आने को थे और लोग कुछ डरे से लगते थे, मुझे कोई भी हंसता हुआ नहीं दिखता था। यह बात कुछ अजीब सी लगती थी।

Comments

  1. अच्छा संस्मरण है. मजा आया पढ़कर.

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  2. ज्ञानवर्धक लेख । बहुत ही अच्छी तरह से शब्दों को पिरोया है आपने ।

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  3. Anonymous1:53 PM

    नमस्ते जी, मै कुछ समय से एक भारतीय अधिकारी (जो मास्को मे हैं)का ब्लाॅग पढ रही हूँ. आज आपके द्वारा
    पुराने रूस की जानकारी भी पढने को मिली.बडे अच्छे शब्दों मे आपने लिखा है.

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