इन्तजार है

आजकल परीक्षा की कौपियां जाचने का काम चल रहा है कई कौपियों को जांच कर खुशी हुई; कुछ को देख कर दुख; और कुछ को देखकर ... इसी में से एक कौपी यह भी, जिसमें इस कविता के अतिरिक्त और कुछ नहीं था|

आज सोचता हूं कि काश मैंने भी साल भर पढ़ा होता|
तो खाली न रहती मेरी कौपी,
हर सवाल के जवाब को मैने भी बड़ी खूबसूरती से जड़ा होता|
भले ही आता उनींदी आखें लेकर परीक्षा कक्ष में,
पर परीक्षा के बाद मुस्कराते हुये आगे बड़ा होता|
काश मैंने साल भी भर पढ़ा होता|

पर मैंने इसी कविता की तरह अफसाने बुने|
सच कहता हुं गुरुदेव बाकी समय लता और किशोर के गाने सुने|
काश मैने विज्ञान का अमृत रस पिया होता|
तो मेरा सर भी उसका ज्ञान होता|
काश मैंने साल भी भर पढ़ा होता|

मैं जो करने आया था वो कर न सका|
कल मैं सबको पानी पिलाता था,
आज अपने लिये भी भर न सका|
काश मेरा बर्तन भी भरा न होता|
तो आज मेरा रोम रोम उत्साह से चढ़ा होता|
काश मैंने साल भी भर पढ़ा होता|

जिन्होने मेरी कविताऔं से अपनी गर्ल फ्रेन्डों को मनाया है|
मेरे शेरों को गा कर रूठों को मनाया है|
मैं जानता हूं वे बेवजह मुझसे रूठ जांयेगे|
कल वह खुद मेरे पास आते थे,
पर आज वे मुझे भगायेंगे|
काश मैं उनकी वाह-वाही मै न पड़ा होता|
काश मैंने साल भी भर पढ़ा होता|

यह बताने कि जरूरत नही कि विज्ञान कि कौपी में, इस कविता पर, क्या नम्बर दिये गयें होंगे| मैं इस लड़के को जानती हूं, अच्छा लड़का है| माता पिता के जोर पर विज्ञान विषय ले लिया| इसको हिन्दी पत्रकारिता में जाना चाहिये वहां अच्छा करेगा| अगले सेशन में वह फिर से मेरे क्लास में आयेगा, तब समझाउंगी| ठीक कैरियर के चुनाव की सलाह भी आवश्यक है|

ओह ... ओह .... लगता है कि कुछ जल रहा है देखूं कही सब्जी तो नही जल गयी| खाने की टेबल मुन्ने के बापू जरूर कहेंगे कि फलां फलां की पत्नी कितना अच्छा खाना बनाती है| मेरा खाना भी अच्छा बनता है सब लोग तारीफ करते हैं यह भी दूसरों से मेरे खाने की तारीफ करते हैं पर मुझसे क्यों नही कहते| इसी तरह की कुछ बात पार्टियों में होती है|

मैं इन्हे पार्टियों में दूसरी महिलाओं से बात करती सुनती हूं बहुत अच्छे से बात करते हैं उनकि साड़ियों, उनके तौर तरीकों की तारीफ बहुत शाइस्ता तरीके से करते हैं और तारीफ ठीक ही करते हैं| मुझे उससे कोई गिला नहीं| पर मैं भी अच्छी साड़ियां पहनती हूं मेरे भी तौर तरीके अच्छे हैं पर कभी भी उन्होने, मेरे लिये, मुझसे नहीं कहा| हां मैने उन्हे मुन्नी से जरूर यह कहते सुना कि अपनी मां की तरह रहो| उससे जरूर मेरी तरीफ की, पर मेरे सामने नहीं की| मैं कई बार उनसे पूछती हूं कि मेरी साड़ी कैसी है उनका हमेशा एक ही जवाब रहता है कि ठीक है, एक बार भी नहीं कहा कि बहुत अचछी है कभी नही कहा कि सुन्दर लग रही हो| मालुम नहीं कि, और बहनो के पती ऐसे ही हैं क्या?

मैं अपनी तारीफ, मुन्ने के बापू से सुनने को तरस गयी| क्या वह यह नहीं समझते कि पत्नी की थोड़ी बहुत तारीफ, झूठी ही सही, करनी चाहिये: अच्छा लगता है| और यह सब पती - पत्नी के रिश्ते के लिये जरूरी भी है|

मुझे इन्तजार है कि यह एक बार तो कहेंगे कि साड़ी बहुत अच्छी है, सुन्दर लग रही हो, आज का खाना बहुत अच्छा बना था|

कौपियां जाचने से यह चिठ्ठी शुरू की और जाने कहां - मुन्ने के बापू पर - पहुंच गयी| हम लोंगों का जीवन तो बस ....

चलूं लगता है कि चिठ्ठी लिखने में बैंगन की सब्जी तो जल गयी| आलू जीरा छौंक लेती हूं: इन्हे अच्छी लगती है न, पसन्द करेंगे|

Comments

  1. आपके खाना बनाने की बातों से तो मुझे पढते पढते भूख लग गई।
    वैसे उस लडके ने कविता बहूत शानदार लिखी थी। आप उसे पत्रकार बनने की तो कहना ही परन्तु उसे ब्लागिंग पर भी हाथ आजमाने को उकसाना क्योंकी उसकी कविता जबर्दस्त थी, इस समय ब्लागिंग में फालतु कविताओं कि बाढ सी आगई है। कम से कम अच्छी कविता तो पढने को मिलेगी।

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  2. Anonymous5:53 PM

    भौजी, प्रणाम

    आपकी दूसरी पोस्ट देखकर अच्छा लगा। वैसे बंदे ने कविता अच्छी लिखी है।

    और उन्मुक्त भैया तो टू मच हैं। अरे भाई, कभी तो तारीफ़ कर दिया कीजिए भाभीजी की।

    वैसे भाभी जी , चिन्ता मत कीजिए। अकेले में हमें मिलेंगे, तो धमकाउंगा भाई साहब को। वैसे आलू जीरे का छौंक हमें भी अच्छा लगता है।

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  3. Anonymous11:23 PM

    मैं अपनी तारीफ, मुन्ने के बापू से सुनने को तरस गयी| क्या वह यह नहीं समझते कि पत्नी की थोड़ी बहुत तारीफ, झूठी ही सही, करनी चाहिये: अच्छा लगता है| और यह सब पती - पत्नी के रिश्ते के लिये जरूरी भी है|
    लगता है कि भाई साहब उस सिद्धांत पर आस्था रखते हैं जिसके अनुसार पीठ पीछे की गई प्रशंसा ही असली प्रशंसा है!! ;) :D

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  4. मुझे तो लगता है कि, बल्कि दावा है कि वो आपको देखते होंगे तो आपकी प्रशंसा में उनके मुँह से बोल नहीं फूट पाते होंगे. वे बस आपको प्रशंसा से निहारते ही रह जाते होंगे.

    क्या यही वज़ह नहीं है कि वे आपके सामने आपकी तारीफ़ नहीं कर पाते और दूसरों के सामने आपकी तारीफ़ों के पुल-पे-पुल बांधते चले जाते हैं.

    हमें भी आलू जीरा खिलाइए किसी दिन आपके बनाए खाने की तारीफ हम हाथों हाथ कर देंगे.

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