मैं अनूप भाईसाहब का धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होने चिट्ठा चर्चा में मेरी रूस यात्रा की चिट्ठी का जिक्र करते हुऐ यह बताया कि,
इस लेख में कुछ तो मेरे चिट्टे की चिट्ठियों के बारे में है पर वास्तव में, यह लेख, मेरे चिट्ठे 'मुन्ने के बापू' के बारे में न हो कर, मुन्ने के बापू यानि उन्मुक्त के चिट्ठों की चिट्ठियों के बारे में है।
कुछ दिन पहले, इनके (उन्मुक्त के) इमेल पर मेरे लिये सुश्री मंजुला सेन का एक इमेल अंग्रेजी में आया था। मुझे वे नाम से महिला लगीं। यह इमेल चूंकि मुझे संबोधित था इसलिये इन्होने मुझसे जवाब देने को कहा। सुश्री सेन ने लिखा था कि, वे टेलेग्राफ अखबार की संवादाता हैं, उन्हें मेरा चिट्टा अच्छा लगा, वे हिन्दी चिट्ठेकारी के बारे में लिख रही हैं, और मुझसे बात करना चाहती हैं।
मैंने सुश्री सेन की इमेल का जवाब तो दिया पर उनसे बात नहीं की। इस लेख में कुछ बातें स्पष्ट नहीं है। गलती मेरी ही है, मुझे उनसे बात कर लेनी चाहिये थी। खैर, मैं बताना चाहूंगी कि मैंने उनसे बात क्यों नहीं की और जो बातें उनके लेख में स्पष्ट नहीं है, उसे भी स्पष्ट करना चाहूंगी।
उन्मुक्त, आजकल अपने चिट्ठे पर हरिवंश राय बच्चन और रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन के बारे में लिख रहें हैं। यदि आप उसको पढ़ रहे होंगे तो मुझे यह बताने की जरूरत नहीं कि इन दोनो में से, इनको किसका जीवन पसन्द है और किसका नहीं।
फाइनमेन बहुत बड़े व्यक्ति थे -सैकड़ो साल में वैसा कोई बिरला इन्सान पैदा होता है। उनकी हर बात का ध्यान देने और उसका अनुचरण अपने जीवन में करने की जरूरत है। ईश्वर, न तो सबको वह काबलियत देता है और न ही सब अपने जीवन में उतने ऊपर उठ सकते हैं, पर उस तरह का जीवन जीने का प्रयत्न तो समान्य व्यक्ति भी कर सकता है। उन्मुक्त, की जीवन शैली भी बहुत कुछ वैसी ही है, उसी तरह की ... हरकतें, उसी तरह की बेवकूफी ... इन बेवकूफियों में दो तीन बार जान खतरे में पड़ गयी। हांलाकि महत्वता की नजर में, इनका जीवन साधरण है।
उन्मुक्त ने अभी अपने चिट्ठे पर फाइनमेन के बारे में एक चिट्ठी यहां पोस्ट की किसी बात को इस लिये न मानो क्योंकि कोई अधिकारी या विशेषज्ञ कह रहा है उसे तर्क पर परख कर देखो। इनके लिये जूते पर बढ़िया पौलिश करने वाला या बढ़िया सड़क चमकाने वाला, किसी भी बड़े आलसी अधिकारी से ऊचां है। यह कहते हैं कि,
मेरे पास तो नहीं, पर इनके पास अक्सर इमेल आता है जिस पर लोग इनसे इनका परिचय पूछते हैं, लिखते हैं कि क्या मिल चुके हैं, या मिलने की बात करते हैं। इनका हमेशा यही जवाब रहता है कि
भारतीय पत्नियां या तो पतियों को अपने रंग में रंग लेती हैं, या उनके रंग में रंग जाती हैं - मैं उनके रंग में हूं। बस, मेरे चिट्ठे की चिट्ठियां कॉपीलेफ्टेड नहीं हैं, वे मेरी हैं। महंगाई है, क्या मालुम कभी दो पैसे कमा लूं। (कृपया अन्त में नोट -१ देखें।)
यही कारण था कि मैंने सुश्री मंजुला सेन से बात नहीं की, पर उन्हें बाकी सारे चिट्ठों की सूची भेज दी थी ताकि वे उनसे बात कर लेख लिख दें। मै यही समझती रही कि उन्होने बाकी चिट्ठेकार बन्धुवों से बात कर, लेख लिख दिया होगा। सुश्री सेन के द्वारा लिखे हुऐ इस लेख की कहीं और भी चर्चा नहीं आयी, इसलिये बात आयी और गयी हो गयी।
इस लेख में हम लोगों के लिये गीक शब्द प्रयोग किया गया है। मैंने इनसे इसका अर्थ पूछा, तो इन्होने बताया कि इसका अर्थ समय समय के अनुसार बदलता रहा है और यह इस पर भी निर्भर करता है कि किस तरह से प्रयोग किया गया है। मैं इसके अर्थ के बारे में भ्रमित हूं।
मैं पढ़ाती हूं; विज्ञान से सम्बन्ध रखती हूं। इसी कारण मुझे कभी, कभी विदेश जाना पड़ता है। मैं इसी सिलसिले में रूस, जापान, अमेरिका, और कैनाडा जा चुकी हूं; बाहर कुछ साल पढ़ाया भी है। आने वाले समय पर, कुछ अनुभवों को चर्चा करने का प्रयत्न करूंगी।
मुझे कंप्यूटर का थोड़ा बहुत ज्ञान है। इमेल देख लेती हूं और कर भी लेती हूं। यह भी इसलिये शुरु हुआ क्योंकि यह न तो फोन पर बात करना पसन्द करते हैं न ही इन्टरनेट पर चैट करना। इन्हें इमेल के द्वारा ही बात करना पसन्द है। मैं इन्टरनेट पर खोज भी कर लेती हूं। इनकी मदद से, हिन्दी में चिट्ठा भी लिख लेती हूं। इससे ज्यादा मुझे कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है।
यह फाइलों को इधर उधर करते हैं। इनका काम न तो कंप्यूटर से संबन्धित है और न ही यह विज्ञान संबन्धित फाइलें इधर उधर करते हैं। इन्हे न केवल विज्ञान पर, शायद सब विषय पर रुचि है। यह ओपेन सोर्स के समर्थक हैं और उसी पर काम काम करना पसन्द करते हैं। इनका मानना है कि भविष्य ओपेन सोर्स का ही है और इसी में अपने देश का भविष्य है। यह और इनका परिवार महिलाओं के समान अधिकारों के न केवल समर्थक हैं पर उस पर स्वयं अमल भी करते हैं। मैं बाहर हमेशा अकेली ही गयी जो कि मेरे परिवार के समर्थन के बिना सम्भव नहीं था। ये स्वदेशी में भी विश्वास रखते हैं और हमेशा न केवल कहते हैं, पर अमल भी करते हैं,
कुछ दिन पहले यहां त्रिकोणीय प्रेम के बारे में जिक्र किया गया था। इनका (उन्मुक्त का) भी त्रिकोणीय प्रेम है। यह जब घर में होते हैं तब,
मैंने सुश्री सेन की इमेल का जवाब ज्लदी में दिया था। जवाब जल्दबाजी में लिखने के कारण, व्याकरण की कुछ गलती हो गयी थी। मेरे पास पढ़ाने का काम तो है ही, उसके साथ घर में भी काम की कमी नहीं है:
स्पाईडरमैन तो बच्चों के हीरो हैं पर मकड़ा, बिच्छू, यह तो मेरी समझ के बाहर है। यह मकड़ा नहीं, मकड़ी है। इसका नाम लूसी है और इस लिये रखा गया है। मालुम नहीं कैसे लोगों से पाला पड़ा है - ईश्वर ही मुझे इस परिवार के सदस्यों से बचाता है। कभी सोचती हूं कि आजयबघर ही खोल लेती, तो अच्छा रहता। इन लोगों को शौक तो तरह तरह के हैं पर इन सब को देखने का काम मेरा है। इसलिये समय की कमी रहती है। व्याकरण की गलती ठीक करते हुऐ, सुश्री सेन को मेरा जवाब यह था।,
चलती हूं, मेरी बंगाली सहेली ने मसटर्ड फिश बनाना सिखाया है। आज मछली आयी है। मसटर्ड फिश बनानी है। यह भी किसी इम्तिहान से कम नहीं। इस पोस्ट लिखने में तो उंगलियां ही टूट गयीं।
नोट-१: मैंने इस चिट्ठी में लिखा है,
'कुछ दिन पहले हमारे एक कलकतिया-कुलीग ने फोनवार्ता के दौरान बताया कि प्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक टेलीग्राफ में मुन्ने के बापू और मुन्ने की मां के ब्लाग का जिक्र हुआ था। वह विवरण तो हम न देख पाये।'उत्सुक्तावश, मैंने इस लेख को खोजा, तो पता चला कि यह लेख टेलीग्राफ समाचारपत्र में १९ नवम्बर को 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम के शीर्षक से छपा है। यह पढ़ने योग्य है। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा है।
इस लेख में कुछ तो मेरे चिट्टे की चिट्ठियों के बारे में है पर वास्तव में, यह लेख, मेरे चिट्ठे 'मुन्ने के बापू' के बारे में न हो कर, मुन्ने के बापू यानि उन्मुक्त के चिट्ठों की चिट्ठियों के बारे में है।
कुछ दिन पहले, इनके (उन्मुक्त के) इमेल पर मेरे लिये सुश्री मंजुला सेन का एक इमेल अंग्रेजी में आया था। मुझे वे नाम से महिला लगीं। यह इमेल चूंकि मुझे संबोधित था इसलिये इन्होने मुझसे जवाब देने को कहा। सुश्री सेन ने लिखा था कि, वे टेलेग्राफ अखबार की संवादाता हैं, उन्हें मेरा चिट्टा अच्छा लगा, वे हिन्दी चिट्ठेकारी के बारे में लिख रही हैं, और मुझसे बात करना चाहती हैं।
मैंने सुश्री सेन की इमेल का जवाब तो दिया पर उनसे बात नहीं की। इस लेख में कुछ बातें स्पष्ट नहीं है। गलती मेरी ही है, मुझे उनसे बात कर लेनी चाहिये थी। खैर, मैं बताना चाहूंगी कि मैंने उनसे बात क्यों नहीं की और जो बातें उनके लेख में स्पष्ट नहीं है, उसे भी स्पष्ट करना चाहूंगी।
उन्मुक्त, आजकल अपने चिट्ठे पर हरिवंश राय बच्चन और रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन के बारे में लिख रहें हैं। यदि आप उसको पढ़ रहे होंगे तो मुझे यह बताने की जरूरत नहीं कि इन दोनो में से, इनको किसका जीवन पसन्द है और किसका नहीं।
फाइनमेन बहुत बड़े व्यक्ति थे -सैकड़ो साल में वैसा कोई बिरला इन्सान पैदा होता है। उनकी हर बात का ध्यान देने और उसका अनुचरण अपने जीवन में करने की जरूरत है। ईश्वर, न तो सबको वह काबलियत देता है और न ही सब अपने जीवन में उतने ऊपर उठ सकते हैं, पर उस तरह का जीवन जीने का प्रयत्न तो समान्य व्यक्ति भी कर सकता है। उन्मुक्त, की जीवन शैली भी बहुत कुछ वैसी ही है, उसी तरह की ... हरकतें, उसी तरह की बेवकूफी ... इन बेवकूफियों में दो तीन बार जान खतरे में पड़ गयी। हांलाकि महत्वता की नजर में, इनका जीवन साधरण है।
उन्मुक्त ने अभी अपने चिट्ठे पर फाइनमेन के बारे में एक चिट्ठी यहां पोस्ट की किसी बात को इस लिये न मानो क्योंकि कोई अधिकारी या विशेषज्ञ कह रहा है उसे तर्क पर परख कर देखो। इनके लिये जूते पर बढ़िया पौलिश करने वाला या बढ़िया सड़क चमकाने वाला, किसी भी बड़े आलसी अधिकारी से ऊचां है। यह कहते हैं कि,
'अपने देश में ऐसा नहीं होता। अपने देश में लोग अक्सर दूसरे के नाम और वह क्या करता है से ज्यादा प्रभावित होते हैं न कि उसके काम से।'यह अपने विचारों को सबके सामने रखना चाहते हैं, उसी से पहचाने जाना चाहते हैं, न कि अपने नाम या परिचय से। इन्होने इस बात पर भी विचार किया था कि हिन्दी में चिट्ठा लिखना शुरू किया जाय कि अंग्रेजी में - पर लगा कि आज नहीं तो कल हिन्दी के द्वारा ज्यादा देशवासियों के बीच ज्यादा अच्छी तरह से पहुंचेगें, इसलिये इसी साल फरवरी के अन्त में हिन्दी में चिट्ठा लिखना शुरू किया।
मेरे पास तो नहीं, पर इनके पास अक्सर इमेल आता है जिस पर लोग इनसे इनका परिचय पूछते हैं, लिखते हैं कि क्या मिल चुके हैं, या मिलने की बात करते हैं। इनका हमेशा यही जवाब रहता है कि
'मैं भारत के एक छोटे शहर से, एक साधारण व्यक्ति हूं। मेरा चिट्ठा ही मेरा परिचय है। मैं अपने विचारों के लिये पहचाने जाना पसन्द करता हूं न कि नाम या परिचय के कारण।'कई लोग इस पर, इनको गलत भी समझ लेते हैं। चूंकि यह अपने विचार और जो इन्हें पसन्द है - लोगो को बताना चाहते हैं, इसलिये इनकी सारी चिट्ठियां कॉपीलेफ्टेड हैं। इन्हें किसी को भी कॉपी करने, संशोधन करने, की स्वतंत्रता है - इन्हें (उन्मुक्त को) श्रेय देंगे तो अच्छा है, न देंगे तो भी चलता है।
भारतीय पत्नियां या तो पतियों को अपने रंग में रंग लेती हैं, या उनके रंग में रंग जाती हैं - मैं उनके रंग में हूं। बस, मेरे चिट्ठे की चिट्ठियां कॉपीलेफ्टेड नहीं हैं, वे मेरी हैं। महंगाई है, क्या मालुम कभी दो पैसे कमा लूं। (कृपया अन्त में नोट -१ देखें।)
यही कारण था कि मैंने सुश्री मंजुला सेन से बात नहीं की, पर उन्हें बाकी सारे चिट्ठों की सूची भेज दी थी ताकि वे उनसे बात कर लेख लिख दें। मै यही समझती रही कि उन्होने बाकी चिट्ठेकार बन्धुवों से बात कर, लेख लिख दिया होगा। सुश्री सेन के द्वारा लिखे हुऐ इस लेख की कहीं और भी चर्चा नहीं आयी, इसलिये बात आयी और गयी हो गयी।
इस लेख में हम लोगों के लिये गीक शब्द प्रयोग किया गया है। मैंने इनसे इसका अर्थ पूछा, तो इन्होने बताया कि इसका अर्थ समय समय के अनुसार बदलता रहा है और यह इस पर भी निर्भर करता है कि किस तरह से प्रयोग किया गया है। मैं इसके अर्थ के बारे में भ्रमित हूं।
मैं पढ़ाती हूं; विज्ञान से सम्बन्ध रखती हूं। इसी कारण मुझे कभी, कभी विदेश जाना पड़ता है। मैं इसी सिलसिले में रूस, जापान, अमेरिका, और कैनाडा जा चुकी हूं; बाहर कुछ साल पढ़ाया भी है। आने वाले समय पर, कुछ अनुभवों को चर्चा करने का प्रयत्न करूंगी।
मुझे कंप्यूटर का थोड़ा बहुत ज्ञान है। इमेल देख लेती हूं और कर भी लेती हूं। यह भी इसलिये शुरु हुआ क्योंकि यह न तो फोन पर बात करना पसन्द करते हैं न ही इन्टरनेट पर चैट करना। इन्हें इमेल के द्वारा ही बात करना पसन्द है। मैं इन्टरनेट पर खोज भी कर लेती हूं। इनकी मदद से, हिन्दी में चिट्ठा भी लिख लेती हूं। इससे ज्यादा मुझे कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है।
यह फाइलों को इधर उधर करते हैं। इनका काम न तो कंप्यूटर से संबन्धित है और न ही यह विज्ञान संबन्धित फाइलें इधर उधर करते हैं। इन्हे न केवल विज्ञान पर, शायद सब विषय पर रुचि है। यह ओपेन सोर्स के समर्थक हैं और उसी पर काम काम करना पसन्द करते हैं। इनका मानना है कि भविष्य ओपेन सोर्स का ही है और इसी में अपने देश का भविष्य है। यह और इनका परिवार महिलाओं के समान अधिकारों के न केवल समर्थक हैं पर उस पर स्वयं अमल भी करते हैं। मैं बाहर हमेशा अकेली ही गयी जो कि मेरे परिवार के समर्थन के बिना सम्भव नहीं था। ये स्वदेशी में भी विश्वास रखते हैं और हमेशा न केवल कहते हैं, पर अमल भी करते हैं,
'Be Indian, buy Indian'इनके मुताबिक इस ग्लोबीकरण में डब्लू.टी.ओ. का केवल यही हल है।
कुछ दिन पहले यहां त्रिकोणीय प्रेम के बारे में जिक्र किया गया था। इनका (उन्मुक्त का) भी त्रिकोणीय प्रेम है। यह जब घर में होते हैं तब,
- इनके हांथ में कोई पुस्तक होती है; या फिर
- इनकी उंगलियां कंप्यूटर के की-बोर्ड पर थिरक रहीं होती हैं; या फिर
- क्या बताऊं - टौमी इनकी गोद में और बड़ी बड़ी जीभ से इनके चेहरे को चाट रहा होता है। छी...।
- इन तीनो का क्या क्रम है, क्या वे इसी क्रम में हैं या किसी और क्रम में हैं;
- मैं इन तीनो के बीच आती हूं कि नहीं;
- यदि आती हूं, तो कहां आती हूं;
- यदि नहीं आती हूं तो फिर कहां आती हूं।
मैंने सुश्री सेन की इमेल का जवाब ज्लदी में दिया था। जवाब जल्दबाजी में लिखने के कारण, व्याकरण की कुछ गलती हो गयी थी। मेरे पास पढ़ाने का काम तो है ही, उसके साथ घर में भी काम की कमी नहीं है:
- इनको कुत्ते का शौक है;
- मुन्ना अपनी दुनिया में है - चिड़ियां, मकड़े, बिच्छू, और मछलियां पालने का शौक रखता है।
(मुन्ने का कहना है कि बिच्छू ऊपर की ओर डंक मारता है। यदि हांथ, बिच्छू के ऊपर है तो वह डंक मार देगा पर यदि बिच्छू, हांथ के ऊपर है तो कुछ नहीं होगा।)
स्पाईडरमैन तो बच्चों के हीरो हैं पर मकड़ा, बिच्छू, यह तो मेरी समझ के बाहर है। यह मकड़ा नहीं, मकड़ी है। इसका नाम लूसी है और इस लिये रखा गया है। मालुम नहीं कैसे लोगों से पाला पड़ा है - ईश्वर ही मुझे इस परिवार के सदस्यों से बचाता है। कभी सोचती हूं कि आजयबघर ही खोल लेती, तो अच्छा रहता। इन लोगों को शौक तो तरह तरह के हैं पर इन सब को देखने का काम मेरा है। इसलिये समय की कमी रहती है। व्याकरण की गलती ठीक करते हुऐ, सुश्री सेन को मेरा जवाब यह था।,
I am Munne ki maa. I write one blog 'Munne ke bapu'. Unmukt is my husband. He writes three blogs 'Unmukt', 'Chutput', 'Lekh' and does one podcast at 'Bakbak'.
We did see one article in Telegraph about Hindi blogging. It was a nice article.
I am glad that you liked my blog and am sure you will like Unmukt's blogs more.
We are from a small town and blog as ordinary citizens of India. Identities often blur others' thinking. We try to bring out the aspirations of common man and wish to remain the same.
The list of active bloggers is here. I am sure almost all of them will love to talk to you. You can know more about them from their blogs.
चलती हूं, मेरी बंगाली सहेली ने मसटर्ड फिश बनाना सिखाया है। आज मछली आयी है। मसटर्ड फिश बनानी है। यह भी किसी इम्तिहान से कम नहीं। इस पोस्ट लिखने में तो उंगलियां ही टूट गयीं।
इनके तीनो चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की प्रविष्टियां, इनके किसी अज्ञात मित्र द्वारा
इन्होंने स्वयं अपने परिवार के बारे में निम्न चिट्ठियों में लिखा है जिसे आप पढ़ सकते हैं।
Unmukt - उन्मुक्त हिन्दी चिट्ठाकार उन्मुक्त - Unmukt की चिट्ठियाँ
इनके बारे में कुछ अन्य लोगों के विचार पढ़े जा सकते हैं।- उन्मुक्त Unmukt: A Pioneer In Hindi
- अंतर्जाल पर उन्मुक्त जी का छुट-पुट विचरण-समीक्षा
- Semantic Web, the wiki and the future of Internet
- संतौ नदिया ज्ञान की, बहे तुम्हारे द्वार (विज्ञान ब्लॉग चर्चा)
- बैठे ठाले एक चिट्ठाकार चर्चा -पहली कड़ी
- जरा सामने तो आओ छलिए...
- निरपेक्ष भाव के साधक को अर्पित है एक प्रणाम
- आखिर एहसानमंद होना भी कोई बात है! शुक्रिया उन्मुक्त जी!
- ‘उन्मुक्त’ चला जाता है, ज्ञान-पथिक कोई
इन्होंने स्वयं अपने परिवार के बारे में निम्न चिट्ठियों में लिखा है जिसे आप पढ़ सकते हैं।
- अम्मां - बचपन की यादों में
- यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है
- जो करना है वह अपने बल बूते पर करो
- करो वही, जिस पर विश्वास हो
- अम्मां - अन्तिम समय पर
- प्रेम तो है बस विश्वास, इसे बांध कर रिशतों की दुहाई न दो
इनके अन्य लोगों के द्वारा लिये गये साक्षात्कार
मेरे द्वारा इनके बारे में लिखी कुछ चिट्ठियां
- टौमी, अरे वही हमारा प्यारा डौगी,
- मैं तुमसे प्यार करता हूं कहने के एक तरीका यह भी,
- पुराने रिश्तों में नया-पन, नये रिश्तें बनाने से बेहतर है,
नोट-१: मैंने इस चिट्ठी में लिखा है,
'मेरे चिट्ठे की चिट्ठियां कॉपीलेफ्टेड नहीं हैं, वे मेरी हैं। महंगाई है, क्या मालुम कभी दो पैसे कमा लूं।'इसका कारण था कि मैं तो यही यही सोचती थी कि मेरे चिट्ठे की सामग्री महत्वपूर्ण नहीं है इसलिये लोग इसका प्रयोग नहीं करना चाहेंगें - बस इसीलिये यह बात लिख दी थी। वास्तव में मेरे चिट्ठे की सामग्री को प्रकाशित करने की शर्ते यह हैं,
'आपको इस इस चिट्ठे में प्रकाशित सामग्री को - चिट्ठे का आभार प्रकट करते हुऐ अथवा उस चिट्ठी से लिंक देते हुऐ - इसी प्रकार अथवा संशोधन कर बांटने, या अपने चिट्ठे अथवा विकीपीडिया पर डालने की अनुमति है।'इस बात को मैंने विस्तार से अपनी चिट्ठी 'सामग्री प्रकाशित करने की शर्तें' नाम से चिट्ठी पोस्ट की है।
इतनी सरलता से सब कुछ कहना, बहुत मुश्किल काम है जो शायद आप और उन्मुक्तजी ही कर सकते है
ReplyDeleteसरल भाषा में सुन्दर लेख. बधाई.
ReplyDelete"...मेरे पास तो नहीं, पर इनके पास अक्सर इमेल आता है जिस पर लोग इनसे इनका परिचय पूछते हैं, लिखते हैं कि क्या मिल चुके हैं, या मिलने की बात करते हैं। इनका हमेशा यही जवाब रहता है कि ..."
ReplyDeleteमुझे भी लगता है कि उन्मुक्त के बारे में कुछ और जाना जाए. कारण, उनकी सोच, उनकी मेहनत, उनका कार्य सबकुछ उत्कृष्ट कोटि का है - और यह खूब स्पष्ट है.
कभी कभी हम अपने परिचितों के बारे में कुछ और, कुछ ज्यादा जानकर गौरवान्वित भी तो होते हैं...
अति सुन्दर।
ReplyDeleteअति सुन्दर।
ReplyDeleteनमस्ते जी! आपने बडे ही अनूठे अन्दाज मे आप सबके बारे मे बताया. कुछ समय से आपका और उन्मुक्त जी दोनो का ही चिट्ठा पढ रही हूँ.और मुझे आप दोनो के ही चिट्ठे बराबर ही बहुत पसंद हैं(उन्मुक्त जी का आपसे ज्यादा नही!!).उन्मुक्त जी के चिट्ठे से बहुत कुछ जानकारी सीधे और सरल रूप मे मिली.मेरा 'हलुआ' पसंद कर उसे लिन्क करने का शुक्रिया.
ReplyDeleteYah sab padh kar bahut ahha laga.Laga ki mandrake ka ek zanadu india me bhi hai kaash ham vahan pahuch pate!
ReplyDeleteमेरी समझ से हिन्दी में जितने भी ब्लागर्स हैं, उनमें उन्मुक्त जी का विशेष स्थान है। कारण उनकी विद्वता और सरलता कहीं खोजने से भी नहीं मिलती। उनके बारे और बहुत कुछ उनके परिवार के बारे में, जिसमें आप भी शामिल हैं, जानकर अच्छा लगा। आपने जिस सहजता से यह परिचय दिया है, वह काबिलेतारीफ है।
ReplyDeleteमैं यूँ तो पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ, पर आकर अच्छा लगा साथ ही यह अफसोस भी हो रहा है कि पहले क्यों नहीं यहाँ तक पहुंचा। खैर, जो कुछ होता है, अच्छा ही....
अरे हाँ, आपने इस ब्लॉग का शीर्षक मुन्ने के बापू क्यों रखा है यह मेरी समझ में नहीं आया। एक सुझाव है कृपया ब्लॉग के डिटेल में दिये गये वर्णन में "पति" शब्द को सुधार लें। यह गल्ती से "पती" लिख गया है।
और अन्त में एक निवेदन- कृपया कमेंट बॉक्स से वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें, इससे इरीटेशन होती है।
जाकिर भाईसाहब, धन्यवाद।
ReplyDeleteमैंने गलती सुधार ली है और वर्ड वेरीफिकेशन हटा दिया है।
यह चिट्ठा इन्हीं के बारे में है - हमारा एक मुन्ना है बस इसीलिये इसका नाम मुन्ने के बापू रख दिया।
जिन बातों को कहने के लिए हम इतने इतने शब्दों का जाल बुनते हैं ,आपने कितनी सरलता और सपाटता से कह दिया !वाकई प्रभावित हुई !आपकी लेखनी से !
ReplyDeleteबहुत ही रोचक रहा. नीचे की बक बक भी सुन ली. ओग्ग वॉर्बिस हम स्वयं अपने स्वयं के संगीत संग्रह के लिए लगभग पिछले आठ वर्षों से कर रहे है. एम.पी.३ की तुलना में आवाज़ की क्वालिटी ज़्यादा अच्छी होती है.आभार.
ReplyDeletehttp://mallar.wordpress.com
दो साल बाद इसे पढ़ना एक सुखद अनुभव रहा। दुबारा पढ़ने पर यह भी लगा कि समय कैसे गुजर जाता है ,पता ही नहीं चलता।
ReplyDeleteYah sab padh kar bahut ahha laga.Laga ki mandrake ka ek zanadu india me bhi hai kaash ham vahan pahuch pate!
ReplyDeleteमेरा तो यही मत आज भी है !
आज पढ़ी यह पोस्ट. उन्मुक्त जी ने ब्लौगर मीट पर मेरे जाने के विषय में एक टिप्पणी की थी. सहमत हूँ मैं इस सम्बन्ध में उनके विचार से. स्वागत.
ReplyDeleteमुझे भी कई बार लगता है कि उन्मुक्त जी के बारे में कुछ और जाना जाए. कारण केवल यही कि उनकी उनका अंदाज जुदा है ....और अधिकतर ब्लोग्गर लम्बे समय में अपने को इतना सकारात्मक छद्म रूप में नहीं रख पाते है ! उन्मुक्त जी की जय जय !
ReplyDeleteआप के और उन्मुक्त जी के बारे में जान कर बेहतर लगा।
ReplyDeleteआप की एक बात कुछ जमी नहीं। हमारी श्रीमती जी न तो हमें अपने रंग में रंग पाई हैं और न ही हमारे रंग में रंग पाई हैं। फिर भी कोई दुविधा नहीं है। दोनों रंग घरेलू जनतंत्र में फल फूल रहे हैं।
क्या कमाल का लिखती हैँ आप.. कितना सहज , कितना सरल कितना अपना सा...
ReplyDeleteआपने लिखना क्यों स्थगित कर रखा है?
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