कौल भाई साहब धन्यवाद| यदि आपने मुन्ने के बापू - उन्मुत – की मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया की पोस्ट पर टिप्पणी देकर इन्हे उलाहना न दिया होता तो यह मुझे कभी मुझे बताते कि रोज चुपचाप कमप्यूटर में बैठ कर क्या करते रहते हैं|
संजय भईया, आपको भी धन्यवाद| मैंने उसी पोस्ट पर आपकी टिप्पणी भी पढ़ी| उससे हिम्मत बढ़ी और जोश भी आया| मैंने भी अपना चिठ्ठा शुरू कर दिया| मैं मुन्ने के बापू की सारी सच्चाई आपको बताऊंगी: यह बहुत इतराने लग गये हैं|
स्कूल में पढ़ाओ, घर का काम करो, फिर मुन्ने को देखो| मुन्नी तो पहिले कुछ सहायता कर देती थी पर अब वह बाहर चली गयी समय कम रह गया है| इसलिये कुछ चिठ्ठे तो अवश्य पोस्ट कर सकूंगी, पर इनकी तरह रोज एक चिठ्ठा तो पोस्ट नही कर पाऊंगी| इन्हे तो और कोई काम है ही नहीं| इन्हे तो बस टी.वी. या कमप्यूटर के सामने बैठ कर चाय का और्डर देना आता है| कभी प्यार भरी अवाज सुनी तो समझ जाओ कि चाय, अदरक और तुलसी की बनानी है यदि आवाज में थोड़ी और मिठास हो तो फिर साथ में पकौड़ी और चटनी का भी और्डर है|
काश हम पत्नियों के पास भी - हिन्दुस्तानी पत्नी ऐसा - पती होता जो घर के बाहर, घर के अन्दर सब जगह काम कर सकता| हिन्दुस्तानी पतियों का भी जीवन, क्या जीवन है, अहा!
देखें अब फिर कब मुलाकात होती है|
संजय भईया, आपको भी धन्यवाद| मैंने उसी पोस्ट पर आपकी टिप्पणी भी पढ़ी| उससे हिम्मत बढ़ी और जोश भी आया| मैंने भी अपना चिठ्ठा शुरू कर दिया| मैं मुन्ने के बापू की सारी सच्चाई आपको बताऊंगी: यह बहुत इतराने लग गये हैं|
स्कूल में पढ़ाओ, घर का काम करो, फिर मुन्ने को देखो| मुन्नी तो पहिले कुछ सहायता कर देती थी पर अब वह बाहर चली गयी समय कम रह गया है| इसलिये कुछ चिठ्ठे तो अवश्य पोस्ट कर सकूंगी, पर इनकी तरह रोज एक चिठ्ठा तो पोस्ट नही कर पाऊंगी| इन्हे तो और कोई काम है ही नहीं| इन्हे तो बस टी.वी. या कमप्यूटर के सामने बैठ कर चाय का और्डर देना आता है| कभी प्यार भरी अवाज सुनी तो समझ जाओ कि चाय, अदरक और तुलसी की बनानी है यदि आवाज में थोड़ी और मिठास हो तो फिर साथ में पकौड़ी और चटनी का भी और्डर है|
काश हम पत्नियों के पास भी - हिन्दुस्तानी पत्नी ऐसा - पती होता जो घर के बाहर, घर के अन्दर सब जगह काम कर सकता| हिन्दुस्तानी पतियों का भी जीवन, क्या जीवन है, अहा!
देखें अब फिर कब मुलाकात होती है|
अरे! भाभीजी आप तो लेखनी में मुन्ने के बापू को भी पछाङ रहीं हैं, हम खांमखां अब तक उन्हे झेलते रहे. आप नियमीत लिखीये, देवर लोगन के वास्ते.
ReplyDeleteआप घर-गृहस्ती कि चक्की में जिस प्रकार पीस रहीं हैं, हमारी संवेदनाएं आपके साथ हैं. कहते हैं कह देने से दर्द कम हो जाता हैं तो आप अपनी शिकायते चिट्ठे के माध्यम से सुनाती रहीयेगा.
उन्मुक्त भाई से यह बात कहने कि कोई आवश्यक्ता नहीं हैं, वरना नारज़ होगें कि उनकी जीन्दगी में हम काहे टांग डाल रहे हैं. फिर हम भी तो परीवार वाले आदमी हैं. वे हमारे मुन्ने कि माँ को भी उक्सा सकते हैं.
भाभीजी....!!
ReplyDeleteजी हमने कहा - नमस्ते..!!
वाह! बड़ा बढ़िया लिखती हैं। स्वागत है इस पोल खोलक अभियान में कूदने का।
ReplyDeleteवाह! बड़ा बढ़िया लिखती हैं। स्वागत है इस पोल खोलक अभियान में कूदने का।
ReplyDeleteनमस्कार भाभीजी,
ReplyDeleteब्लॉगलेखन की दुनिया मे स्वागत है, आप इतना अच्छा लिखती है, यदि ये पता होता तो काहे हम भाई साहब के ब्लॉग पर जाकर पढते(अब तो इसे ही होमपेज बना लेंगे, ठीक है ना भाभीजी?) आप लिखिए बिन्दास! हम देवर लोग तो हैइये ही पढने के लिए।
स्वागत है भाभी जी, ठीक किया आपने 'तू डाल-डाल मैं पात-पात' बस ध्यान रखिएगा बशर्ते कभी-कभी लिखें पर लिखना बंद मत करना।
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